25 फरवरी 2021, बेतिया। आयुर्वेद में किसी व्यक्ति के जीवन में 16 संस्कारों का विवरण मिलता है। जिसमें से एक जातकर्म संस्कार है। इसी के अंतर्गत एक संस्कार स्वर्णप्राशन या सुवर्णप्राशन संस्कार भी है जिसमें शिशु को स्वर्ण अर्थात सोना का सेवन कराया जाता है जिसका कश्यप संहिता में विस्तृत विवरण है। इसमें शहद, A2 घी में स्वर्ण भस्म का मिश्रण अनेक औषधीय पौधे का प्रयोग किया जाता है जो बच्चों को चटाया जाता है। इस संस्कार के लगातार प्रयोग के परिणाम स्वरूप शिशु के मानसिक शक्ति,शारीरिक शक्ति, रोगप्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है।
इसके सेवन के परिणाम स्वरूप बच्चों का वायरल बुखार, चिड़चिड़ापन, भूख नहीं लगना जैसे विकारों का भी बचाव होता है। आयुर्वेद के अनुसार स्वर्ण संबंधी औषधि का महत्व सबसे ज्यादा पुष्य नक्षत्र में होता है जिसका सबसे ज्यादा लाभ मिलता है। प्राचीन समय में प्रत्येक बच्चों का स्वर्णप्राशन कराया जाता था, मगर आधुनिकता के चक्कर में हम अपने इस तरह के संस्कारों को भूलते जा रहे जो बच्चों को स्वस्थ रखता था।
यह स्वर्णप्राशन बेतिया में राजगुरु चौक के समीप अवस्थित श्री श्री आयुर्वेदिक केंद्र द्वारा संस्कृति आर्य गुरुकुल, राजकोट के सहयोग से बेतिया में निःशुल्क आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत 2 माह से 15 साल तक के 60 बच्चों ने स्वर्णप्राशन का लाभ उठाया। इस स्वर्णप्राशन शिविर की शुरुआत शहर के आर्य समाज के प्रधान रुद्रदेव आर्य जी एवं कृष्णमोहन जी हिन्दू ने किया। यह शिविर प्रातः 10 बजे से रात्री 8 बजे तक अनवरत चलता रहा जिसमें अभिभावक लगातार अपने बच्चों को ला रहे थे। यह शिविर प्रत्येक माह पुष्य नक्षत्र में बेतिया में निःशुल्क आयोजित होते रहेगा जिसके बारे में विस्तृत जानकारी 8935806554 पर सम्पर्क कर ली जा सकती है। अभिभावकों के अनुसार कोरोना के लॉकडाउन से लोगों का आयुर्वेद में विश्वास बढ़ा है तो जरूरी है स्वर्णप्राशन जैसी पुरानी आयुर्वेदिक परम्पराओं को पुनर्जीवित कर लोगों के बीच रखा जाए जिससे कोई भी व्यक्ति उसका लाभ आसानी से उठा सके। आर्य समाज के प्रधान रुद्रदेव जी ने कहा ऐसे शिविर का आयोजन अनवरत चलते रहना चाहिए जिससे कि प्रत्येक बच्चे उससे स्वास्थ्य लाभ उठा सके। कृष्णमोहन जी के अनुसार स्वर्णप्राशन आज के बच्चों की जरूरत ही है क्योंकि आज के भाग-दौड़ भरी जिंदगी में बच्चों में बहुत सारे विकार आते जा रहे और स्वर्णप्राशन इन विकारों को दूर करने में सहायक है। इस मौके पर शिविर के आयोजक अविनाश कुमार ने अभिभावकों को बताया कि जिस प्रकार अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में टीका होता है उसी प्रकार हम स्वर्णप्राशन को आयुर्वेद का टीका बोल सकते है जिससे बच्चों का कई बीमारियों से बचाव होता है, तथा अभिभावकों को आश्वस्त किया कि यह शिविर लगातार उनके आयुर्वेदिक केंद्र पर निःशुल्क चलते रहेगी जिससे अधिक से अधिक से अधिक बच्चे स्वास्थ्य लाभ कर सके। साथ में यह भी बताया कि स्वर्णप्राशन बच्चों को 15 साल तक लगातार दिया जा सकता है जो बच्चों के पूर्ण विकास में बहुत बड़ा सहायक हो सकता है। अगले माह पुष्य नक्षत्र 24 मार्च को आएगा जिसमें पुनः बच्चों को स्वर्णप्राशन दिया जाएगा और उसके आगे की तिथि सोशल मीडिया जैसे माध्यम से दी जाती रहेगी और साथ में आग्रह किया कि अभिभावक अपने बच्चों को इस स्वर्णप्राशन शिविर में जरूर ले कर आये और अपने बच्चों को आयुर्वेद के इस आशीर्वाद का लाभ दे।