Post: पुनः आगमन

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बहुत दिनों से मन व्यग्र सा था, लग रहा था पीछे कुछ छुट सा गया है। अपने इतिहास को खंगालना चालू किया तो दिखा कि बहुत कुछ तो पड़ा हुआ है, निर्जीव स्वरूप। बहुत कुछ इनसे किया जा सकता है। यह पुनः आगमन है। चंपारण कि धरती से चंपारण के लिए, पुनः कुछ लिखने को, कुछ देखने को, कुछ सीखने-सिखाने को। और पुनः आगमन का समय इस वर्षा ऋतु से बढ़िया क्या हो सकता, जब एक जगह रहने कर भोजन ग्रहण करने वाले निर्जीव समान पेड़-पौधे भी हर्षित हो।

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