बाबा जी फिर से हाजिर है, वैसे बाबा जी तो घुम्मकड़ किस्म के इंसान है, मगर बहुत दिनों बाद उन्हें बेतिया रहने का मौका मिला। बाबा जी अपने बचपन में हमेशा बेतिया आते-जाते रहे है। आज उसी बेतिया के बारे में बाबा जी न लिखे तो यह तो बेईमानी ही हुई न। अंततः बाबा जी को आज मौका मिल रहा इस शहर के बारे में भी लिखने को। तो आइये जाने बाबा जी से आज के बेतिया के बारे में।
बेतिया, अपने राजघराने और अन्य इतिहास के लिए जाना माना शहर। आज खुद अपनी पहचान को मोहताज है। बहुत दिन बाद इस शहर में रुका तो शहर की पुरानी फिजा ही बदली-बदली सी लगी। यह शहर हमेशा से एक ख़ास रहा अपने इतिहास और अपनी मौजूदा गलियों के कारण जो आपको शहर के बीचों-बीच मौजूद दो मुख्य सड़कों को कई जगहों से जोड़ते हुए राहगीर के कार्य को आसान कर देती है। मगर इस बार ऐसा लगा जैसे लोग बेतिया के इस पहचान को खत्म कर देना चाहते है। एक तो सांस्कृतिक महत्त्व के स्थानों पर पुरे शहर से जमा किये गए कूड़े-कचरे का ढेर और दूसरा सड़क पर लगने वाला जाम। शायद यहाँ की जनता को यह न मालूम है कि आज कल के उनके वारिस जो किसी बड़े शहर में रहती है, वो इसे नापसंद करेंगी और हालात ऐसे हो जाएंगे कि वो यहाँ शायद आना भी पसंद न करे, आखिर शहर की पहचान माने जाने वाले जगहों पर कूड़ा कचरा और जाम कौन पसंद करेगा।
खैर जनता तो रही जनता हमारी सरकारी महकमा भी कुछ इसी तरह का है। जहाँ इनका काम शहर की व्यवस्था को देखना है, वहाँ मालुम ना वो कहाँ गायब दिखते है। जिस सरकारी महकमा का काम शहर के कचरों का निस्तारण करना है, वो सार्वजनिक जगह को कचरा बना रही है चाहे वो राज देवड़ी के पास का पार्क हो या प्रत्येक साल मेला लगने की जगह या फिर राज देवड़ी होकर बाजार जाने का रास्ता या फिर बेतिया का रमना मैदान। इसी प्रकार यदि प्रशासन की बात करे तो जहाँ पुलिस विभाग के दुरुस्त जवानों की जरुरत है वहाँ कुछ रिटायरमेंट के नजदीक पहुंचे बुजुर्ग सिपाहियों को कार्य दे दिया जाता है वो भी कम संख्या में। जहाँ ट्रैफिक के नियमों का पालन कराने के लिए पुलिस जीप को व्यस्त रोड पर खड़ा होना चाहिए तो वो पुलिस जीप शहर के सबसे शांत इलाकों में घूमती नजर आती है। किसी से सुना यहाँ के एस. पी. साहब बहुत अच्छे है मगर ट्रैफिक के हालातों को देखते हुए लगता नहीं की वो कभी अपने सरकारी आवास या दफ्तर से भी बाहर निकलते होंगे, अन्यथा सड़कों पर ट्रैफिक के सामान्य नियमों जैसे बिना हेलमेट पहने मोटर साइकिल चालाक, बिना जूते के मोटर साइकिल चलाते लोग, उच्च रफ़्तार में सड़क पर मोटर साइकिल चलाते हमारे समझदार नए जमाने के कम आयु में ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त नवयुवक नजर न आते।
सिर्फ इतना ही नहीं, शायद बेतिया के प्रशासनिक अधिकारी शहर में लगे जाम को समझे तो उन्हें समझ में आएगा की एक मार्ग वाले ट्रैफिक व्यवस्था की यहाँ सख्त जरुरत है मगर शायद ही कोई अधिकारी यह दिमाग लगाएँ की इस गलियोँ वाले सड़क पर ये कैसे संभव होगा, जरुरत है तो यहाँ के प्रशासन को खुद से कुछ सालाहकार जोड़ने की जो किसी तथाकथित उच्च वर्ग से न होकर उस शिक्षित वर्ग से हो जो शहर के लिए कुछ करना चाहते हो या उसका भला चाहते हो और उससे सम्बंधित सलाहकार की भूमिका में आ सके अन्यथा तथाकथित मारवाड़ी समाज हो या व्यापारी समाज सबने खुद के बारे में ही सोचा है, शहर के बारे में कभी नहीं।
जरूरत हैं आज की शहर के कॉलेज और अन्य प्रशिक्षण संस्थानों के लोगों और अन्य शहरों में रहने वाले युवाओं तक पहुँचने की क्युँकि आज की पीढ़ी कुछ कार्य करना चाहती है, जिससे सबका भला हो सके, हमारे शहर का भला हो सके जिससे वो अपनी पहचान बनाएँ रख सके।
कुछ सुझाव इस बाबा के मन में भी है, मगर सुझाव तो बाबा तभी दे पाएंगे जब हमारे सरकारी अधिकारी उस पर अमल करना चाहे।
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