चम्पारण का मतलब चम्पा के फूलों का जंगल होता हैं॰ यह फूल अपने सुगंध के लिए जाना जाता है| मगर वही चम्पारण शायद अपनी धरती का सुगंध दूसरों को देते-देते खुद का सुगंध खो चुका है| चम्पारण की इस धरती पर का महत्व ऐसे ही समझा जा सकता है कि यह धरती चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे शासक, चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री, महात्मा गांधी को प्रेरणा देती रही है(ज्ञात हो की चम्पारण में ही चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ था, चाणक्य का किला है, गांधीजी की कर्मभूमि है)| यह चम्पारण सिर्फ अपनी ऐतिहासिक परिचय ही नहीं बल्कि वो नेपाल राष्ट्र में प्रवेश करने का एक मुख्य मार्ग भी है या दूसरे शब्दों में कहे कि अंतराष्ट्रीय महत्व के लिए भी जाना जाता हैं|
मगर आज के राजनीतिक हालत जिसमें बिहार में एक तरफ सुशासन का नारा है दूसरी तरफ केंद्र में गांधीजी के तथाकथित अनुयायी हैं, वहाँ चम्पारण को पूछने वाला कोई नहीं हैं| आज के समय में जहां बिहार की अधिकतम सड़कों का कार्य अच्छे तरीके से हुआ है, वही चम्पारण अभी भी सड़क बनने की राह देख रहा है| जब कोई भी आगंतुक सड़क मार्ग से चम्पारण में प्रवेश करता है तो उसे सिर्फ खराब सड़के मिलती है| यहाँ की सड़क की स्वीकृति पहले तो 4-लेन की हुई थी और उसी आधार पर Tatiya Construction Company को सड़क बनाने का ठेका भी दिया गया| शुरुआत में तो कार्य अच्छे तरीके से चल रहा था मगर बाद में ना सिर्फ जगह के महत्व को नकारते हुए केंद्र सरकार द्वारा 4-लेन सड़क को 2-लेन में बादल दिया गया बल्कि Tatiya Construction ने अपना काम भी लगभग रोक दिया| परिणामतः आज बिहार की अधिकतर जनता जहाँ अच्छे सड़क का फायदा उठा रही है वही चम्पारण की जनता आज भी उन्ही टूटे-फूटे सड़क पर चलने को मजबूर है| आज चम्पारण से माननीय सांसद को शायद सड़क की दुर्गति से कोई मतलब नहीं है जैसे की वो इस जगह को जानते भी नहीं हो| दूसरी तरफ यदि हम ऐतिहासिक जगहों की बात करे तो चम्पारण में अधिकतर जगह अभी भी राज्य सरकार की बाँट खोज रही हैं| इस राज्य सरकार की बात करे तो इसमे भारतीय जनता पार्टी भी है जो शायद अपनी संस्कृति से जुडने का दावा करते रहते है, मगर उन्हे चम्पारण की अनेकों अविकसित जगह जैसे चानकीगढ़ (चाणक्य का किला), बावनगढ़ी, लौरिया अशोक स्तम्भ, बेतिया के संग्रहालय और प्राचीन मंदिर भी नहीं दिखते हैं| फलस्वरूप बेतिया संग्रहालय से अनेकों वस्तुएँ, मंदिरो की पुरानी मूर्तियां चोरी होती रहती है (ज्ञात हो पिछले कुछ सालो में बेतिया संग्रहालय से करोड़ो के मूल्य के हीरा की चोरी, वहाँ के घंटा घर में लगे घड़ी के डायल में लगे बहुमूल्य हीरा और धातु भी चोरी हो चुकी है) |यहाँ तक की चम्पारण में ही गांधीजी का आश्रम जिस को नेता लोग कभी कभार उनके जन्म तिथि जैसे समय पर याद कर लेती है भी साल भर उपेच्छित पड़ी रहती है|
चम्पारण के बेतिया में ही हजारीमल धर्मशाला जो की गांधी जी का ठहराव स्थल भी रह चुका है आज टूटा फूटा मौजूद है और उस पर कानूनी केस भी चल रहा है, मगर उसके विवाद को जल्द सुलझा कर उसे सही करने की फिक्र किसी को ना है| मोतीहारी में भी दूसरी तरफ जॉर्ज ऑरवेल का निवास स्थान और गांधीजी से भी जुड़े कई जगह है वो भी आज सरकारी उपेक्षा का शिकार है और स्थानीय लोगो की मेहरबानी पर टिका हुआ हैं|
रक्सौल जो की नेपाल का प्रवेश स्थल भी है वहाँ पर भी यदि सुविधाओ को देखा जाए तो सड़क मार्ग आज तालाब बना हुआ है| पर्यटक सुविधा नगण्य है, जहाँ अंतराष्ट्रीय पर्यटक हमेशा आते रहते हैं परिणाम स्वरूप यह भारत के नाम को भी खराब करता है मगर उसकी चिंता करने वाला कोई नहीं हैं|
मगर आज के राजनीतिक हालत जिसमें बिहार में एक तरफ सुशासन का नारा है दूसरी तरफ केंद्र में गांधीजी के तथाकथित अनुयायी हैं, वहाँ चम्पारण को पूछने वाला कोई नहीं हैं| आज के समय में जहां बिहार की अधिकतम सड़कों का कार्य अच्छे तरीके से हुआ है, वही चम्पारण अभी भी सड़क बनने की राह देख रहा है| जब कोई भी आगंतुक सड़क मार्ग से चम्पारण में प्रवेश करता है तो उसे सिर्फ खराब सड़के मिलती है| यहाँ की सड़क की स्वीकृति पहले तो 4-लेन की हुई थी और उसी आधार पर Tatiya Construction Company को सड़क बनाने का ठेका भी दिया गया| शुरुआत में तो कार्य अच्छे तरीके से चल रहा था मगर बाद में ना सिर्फ जगह के महत्व को नकारते हुए केंद्र सरकार द्वारा 4-लेन सड़क को 2-लेन में बादल दिया गया बल्कि Tatiya Construction ने अपना काम भी लगभग रोक दिया| परिणामतः आज बिहार की अधिकतर जनता जहाँ अच्छे सड़क का फायदा उठा रही है वही चम्पारण की जनता आज भी उन्ही टूटे-फूटे सड़क पर चलने को मजबूर है| आज चम्पारण से माननीय सांसद को शायद सड़क की दुर्गति से कोई मतलब नहीं है जैसे की वो इस जगह को जानते भी नहीं हो| दूसरी तरफ यदि हम ऐतिहासिक जगहों की बात करे तो चम्पारण में अधिकतर जगह अभी भी राज्य सरकार की बाँट खोज रही हैं| इस राज्य सरकार की बात करे तो इसमे भारतीय जनता पार्टी भी है जो शायद अपनी संस्कृति से जुडने का दावा करते रहते है, मगर उन्हे चम्पारण की अनेकों अविकसित जगह जैसे चानकीगढ़ (चाणक्य का किला), बावनगढ़ी, लौरिया अशोक स्तम्भ, बेतिया के संग्रहालय और प्राचीन मंदिर भी नहीं दिखते हैं| फलस्वरूप बेतिया संग्रहालय से अनेकों वस्तुएँ, मंदिरो की पुरानी मूर्तियां चोरी होती रहती है (ज्ञात हो पिछले कुछ सालो में बेतिया संग्रहालय से करोड़ो के मूल्य के हीरा की चोरी, वहाँ के घंटा घर में लगे घड़ी के डायल में लगे बहुमूल्य हीरा और धातु भी चोरी हो चुकी है) |यहाँ तक की चम्पारण में ही गांधीजी का आश्रम जिस को नेता लोग कभी कभार उनके जन्म तिथि जैसे समय पर याद कर लेती है भी साल भर उपेच्छित पड़ी रहती है|
चम्पारण के बेतिया में ही हजारीमल धर्मशाला जो की गांधी जी का ठहराव स्थल भी रह चुका है आज टूटा फूटा मौजूद है और उस पर कानूनी केस भी चल रहा है, मगर उसके विवाद को जल्द सुलझा कर उसे सही करने की फिक्र किसी को ना है| मोतीहारी में भी दूसरी तरफ जॉर्ज ऑरवेल का निवास स्थान और गांधीजी से भी जुड़े कई जगह है वो भी आज सरकारी उपेक्षा का शिकार है और स्थानीय लोगो की मेहरबानी पर टिका हुआ हैं|
रक्सौल जो की नेपाल का प्रवेश स्थल भी है वहाँ पर भी यदि सुविधाओ को देखा जाए तो सड़क मार्ग आज तालाब बना हुआ है| पर्यटक सुविधा नगण्य है, जहाँ अंतराष्ट्रीय पर्यटक हमेशा आते रहते हैं परिणाम स्वरूप यह भारत के नाम को भी खराब करता है मगर उसकी चिंता करने वाला कोई नहीं हैं|
आज चम्पारण के सामने एक सवाल खड़ा है क्या वह सही में भारत का एक अंग है? मगर आज भी उसके मन की आशा बलवती है और आज भी चम्पारण अपने तथाकथित नेता रूपी रहनुमाओं का इंतेजार कर रहा की कब उसका वक़्त आएगा की वह पुनः एक मिशाल खड़ी कर सके और धरोहरों पर नाज कर सके और नई पीढ़ी को प्रेरणा दे सके|
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Jay Ho Baba Ki…!!!!ekdam sahi kahe hain…..
MAJA AA GAYA