Post: हक के लिए आम आदमी का हक छीनते गरीबो के तथाकथित हमदर्द राजनैतिक पार्टियां

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रामगढ़वा, 12 सितंबर| आज के दिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक रूप से परिचय हुआ| ये परिचय एक गरीब के हमदर्द के रूप मे कम बल्कि आम जनता और यातायात सुविधा को भंग करना ज्यादा लगा| आज यहाँ पार्टी के कार्यकर्ता नेशनल हाइवे को अपनी कुछ मांग को लेकर जाम किए हुए थे| उनकी मांग तो जायज थी मगर अपनाया गया तरीका नहीं| वहाँ जब लोगो से पूछा गया तो बताया गया की तथाकथित जरीबों ओर मजदूरो के हक के लिए संघर्ष करने वाले नेता जी का भसान चल रहा था और पुलिस जीप बगल में लगी हुई थी| जब मालूम किया गया तो ये पता चला नेता जी को गरीबों का ध्यान कम बल्कि मीडिया बाइट की ज्यादा चिंता थी| मीडिया के लोगो के जाते ही नेताजी ने मंच छोड़ किसी और को मंच दे दिया| दूसरी तरफ इस जाम के कारण दोनों तरफ के रोड पर जाम लगाना चालू हो गया| जानकारी के लिए मालूम हो की ये रोड नेपाल के लिए सप्लाइ लिंक का काम करता है| जिसके कारण कई किलोमीटर तक बस और ट्रक जाम मे फस गए थे| यहा तक की जाम का उद्देश्य आम जनता को परेशान करना ज्यादा लग रहा था ना की अपनी मांगो को मनवाना क्यूकि वहाँ के अधिकारिओ से संपर्क स्थापित करने की कोसिस पर मालूम चला राज्य के अधिकारियो का प्रसाशनिक सेवा से संबन्धित सम्मेलन चल रहा था और वो आने मे असमर्थ थे| ये जानते हुए भी नेता जी ने सड़क जाम की| कहने को ये पार्टी तो मजदूरो की पार्टी भी है जिसमे ट्रक, बस, टेम्पो इत्यादि चालक भी आते है मगर उन्हे उनसे और उनके रोजगार से कोई मतलब नहीं| जहां तक इस तरह के धरने का उपायुक्त जगह कोई प्रसाशनिक जगह या कोई मैदान होना चाहिए जिससे की आम जनता को कोई कष्ट ना हो और साथ मे उन्हे भी प्रसाशन द्वारा सुना जा सके| यहाँ तक की जो नेता हक के लिए लड़ते है उनसे कुछ सवाल मेरे इस प्रकार है:
1। क्या उन्होने किसी प्रकार की अनियमितता पर शिकायत दर्ज कारवाई?
2। क्या उन्होने शिकायत लिखित तौर पे दिया था?
3। क्या यह जायज है की एक मांग को लेकर पूरी आम जनता को परेसान किया जाए?
4। क्या यह जायज है की जाम मे ट्रक वगैरह को रोक कर राजकोष को घाटा पहुचाया जाए? क्यूँ ना इस घाटे की भरपाई नेताजी के पैकेट से किया जाए?

आज मैं जिस बस से आ रहा था उसके ड्राईवर से बात करने पर मालूम चला उसे वापस रात को गाड़ी लेकर निकलना है और उसे अब सोने का समय नहीं मिलेगा क्यूँ की जाम लंबे देर तक लगने वाली थी|
ये कहाँ तक जायज है की अपनी मांगो को लेकर दूसरे की जान खतरे मे डाली जाए? क्या पार्टी के तथाकथित गणमान्य नेताजी को उस ड्राईवर रूपी मजदूर की चिंता नहीं साता रही थी जिसके बल पर वो नेतागिरी करते है?
देश की पार्टियों के तथाकथित नेतागण से अनुरोध है की सड़क मार्ग जैसे जगह को अपनी अभिव्यक्ति जाहीर करने का जगह ना बनाए, ये आपके और आपके पार्टी के लोकप्रियता के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है और आम जनता के लिए कष्टकर भी|

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