एक तरफ प्राइवेट कंपनी में कार्य और शिक्षा को आधार मान कर प्रोन्नति दी जाती हैं, वही भारत की सरकार द्वारा जाति आधारित प्रोन्नति की तैयारी की जा रही हैं| सरकार की मंशा निचले जातियो के लोगों को उनका अधिकार दिलाना है जिससे वो अग्रणी जातियो की बराबरी में आ सके| सरकार की प्रोन्नति का यह नियम सायद समानता क अधिकार क खिलाफ भी है जिसमे एक जाती विषेश के लोगों को प्रोन्नति मे आरक्षण दी जा रही है और अन्य जाति के लोगों को नीचता का एहसास दिलाया जाए| यह कदम सामाजिक समरसता के लिए और कार्यस्थली पर सहयोग की भावना के लिए भी नुकसान देह है| एक तरफ अल्पसंख्यखों क अधिकार के लिए तो आयोग है मगर बहुसंख्यखों के अधिकार के लिए कोई आयोग गठित नहीं की जाती| प्रोन्नति मे आरक्षण पाये लोग यदि निरंकुश हो गए तो उनके खिलाफ भी उच्च वर्ग के लोग ना जा सकेंगे क्यूकि आयोग और शासन की भाषा सभी जानते है जिसमे कई बार झूठी शिकायते भी की जाती हैं और उच्च वर्ग को उसका फल भुगतना पड़ता है| जहा तक कार्यस्थली की बात है, वहा दो वर्ग के लोग पैदा होंगे: एक उच्च वर्ग के लोग जो कार्य मे ज्यादा निपुण होंगे और कंपनियों के कार्यो का अधिक अच्छे तरीके से निसपादन करेंगे और दूसरे निम्न वर्ग जिन्हे हरेक कार्य में आरक्षण दिखाई देगा और वो कम निपुण होंगे | ये दूसरे वर्ग के लोग कम अवधि की विशेषज्ञता के बावजूद भी ऊचे पद पर होंगे जहाँ विशेसज्ञता की बेहद आवश्यकता होती| इस विशेसज्ञता की कमी के कारण निःसंदेह घाटा लगना ही है| और आज कल जहां सिर्फ घोटाले की बात हो रही और सरकारी कंपनियो की अक्षमता के आधार पर विनिवेश की बात हो रही तो आज की कमाऊ कंपनी भी कुछ समय बाद उनही श्रेणी मे आ जाएगी| फिर सरकार वैसे कंपनिओ के विनिवेश की बात करेगी| विनिवेश मे ये सर्व विदित है की कंपनी के भाव बाजार के हिसाब से लगते हैं| कही प्रोन्नति मे आरक्षण उस विनिवेश के करीब तो हमे नहीं ले जा रही जिसमे आज की सरकारी कंपनियो के ऊपर प्राइवेट कंपनी राज करेंगी और उनका मकसद जन कल्याण की बजाय मुनाफा कमाना होगा| यहाँ तक इन सरकारी कंपनियो के पास भू-सम्पदा भी अच्छी ख़ासी होती है जिसका मूल्यांकन उनके वर्तमान बाजार के भाव से तय होती है ना की वर्तमान जमीन के मूल्य से, इस तरह इन कंपनी को एक तरफ ना केवल सस्ते दामो में एक कंपनी मिल जाती बल्कि वो एक अच्छी-खासी भू-सम्पदा की मालिक भी हो जाती| वर्तमान कोयला घोटाले मे आए नाम जैसे SKS Steel, Jindal Steel & Power इत्यादि जो कॉर्पोरेट वर्ल्ड (प्राइवेट कंपनी) से जुड़े है और साथ मे सरकार से भी जुड़े है तो ऐसे हालत मे किसी भी प्राइवेट कंपनी में कार्य करने वाले की एक ही लक्ष्य कंपनी को फायदा पाहुचना ही होता है के लिए काम करते नजर आते है ना की देश के लिए| तो ऐसे हालत में मुझे नहीं लगता वो सरकारी कंपनी के विकास की बात करेंगे जो उनकी एक बहुत बड़ी प्रतिस्पर्धी हैं| उनका एकमेव लक्ष्य इन कंपनी को नुकसान पहुचाना होता है जिससे वो अधिक से अधिक मार्केट शेयर को पा सके जैसा कोयला घोटाले मे Coal India Ltd को Mozambic में खनन करने को बोल कर किया गया और यहाँ की खदान को प्राइवेट हाथो मे दे दिया गया|
एक तरह से कहे तो प्रोन्नति मे सरकार द्वारा उठाया गया कदम जिस पर आज देश के कुछ प्रतिशत लोग भले ही खुश हो, हमारे ही सर पर कील मारने जैसा है जिसमे ना सिर्फ हमे भविष्य में मूलभूत सुविधा के लिए प्राइवेट कंपनी के ऊपर निर्भर होना होगा वो भी उच्चे दामो में वो भी चंद दिनो की खुशी की बदौलत |